ब्रम्हचर्य क्या होता है ? ब्रम्हचर्य का मतलब क्या होता है ?
नमस्कार साथियों आज हम जानेगे ब्रम्हचर्य के बारे में ! इसे समझने के लिए इस पोस्ट को पूरा और ध्यान से पढ़ने की आवस्यकता होगी ! क्युकी ब्रम्हचर्य बहुत छोटा नाम है पर यह बहुत ही महत्वपूर्ण है इसके बारे कोई भी सम्पूर्ण ज्ञान या जानकारी कोई नहीं दे सकता है ! क्युकी यह इस्वर तक बहुचने की वह सीढ़ी जो आसान नहीं है आज के इस दौर में !
आइये जानते है -
ब्रम्हचर्य होने को तो एक छोटा सा शब्द है ! अगर आप और हम वीर्य को अंदर रोकने को ही ब्रम्हचर्य समझते है तो यह गलत है वीर्य की रक्षा करना और इसे बचाये रखना तो ब्रम्हचर्य का पहला कदम है ! ब्रम्हचर्य का सही अर्थ है की मनुष्य ब्रम्हचर्य के सहारे से अपनी पांचों इन्द्रियों को जाग्रत करके उनके सहारे ज्ञान को प्राप्त करना और साथ ही ईश्वर की प्राप्ति करना ! और अपने आप को महान बनाने के पथ पर ले जाना ! जिससे जीवन में महान कार्य कर सकें !
ब्रम्हचर्य का अर्थ है अपनी जीवनी शक्तियों को संग्रह करना न की उनको बिखेरना ! और उसे उन्नति और मानव भलाई में लगाना ! और अपने मन को ध्यान की और ले जाना ! ध्यान का अलग ही फायदा होता है !
ब्रम्हचर्य का सबसे बड़ा साथी ध्यान होता है पर मन हमें नुकसान ही देता है मन और इक्छा हमें ध्यान और ब्रम्हचर्य की राह पर जाने में बहुत रुकाबट करते है ! जो मनुष्य अपने मन और इक्छा पर काबू कर लेता है उसके लिए ब्रम्हचर्य करना आसान हो जाता है और ईश्वर की प्राप्ति भी आसान हो जाती है !
ब्रम्हचर्य का पालन करने से पहले हमें अपने मन को काबू में करना होता है जो आसान नहीं है सांसारिक सुख जो क्षनिक मात्र के होते है ! इन क्षनिक सुखों के पीछे हमारा मन बहुत तेज़ भागता है ! और ब्रम्हचर्य से हमारा ध्यान हटाता है ! यदि हमें हमारे इस कामुख मन को बस में करना है तो पहले इसकी कार्यविधि समझना होगा की यह काम कैसे करता है ! और गलत कार्य करने से मन आनद क्यों मिलता है !
धीरे धीरे आनद तलब में परिबर्तित हो जाता है और जब तक हम वह आनद मन को नहीं दे देते मन को चेन नहीं मिलता है ! और मन को आनद न देने के कारन हमें चिड़चिड़ा पन , जल्दी गुस्सा , कुछ भी करने का मन आदि जैसे समस्या से खुद ही लड़ते रहेंगे ! और ऐसा रोज होने लगेगा ! और हम इसी में फस कर रह जातें है !
मनुष्य का पहला और आखरी लक्ष्य उस ईश्वर को प्राप्त करना होना चाहिए ! पर मनुष्य अपने मन के हिसाब से चलता है ! जिस भी राह पर मन ले जाता मनुष्य उसी राह को सही समझ कर चलता है ! चाहे वह गलत हो !
अपने मन पर काबू करने के लिए सबसे पहले ज्ञान की आवस्यकता होती है ! और ज्ञान बिना ध्यान के नहीं आता है ! ब्रम्हचर्य का पालन करने के लिए ज्ञान होना चाहिए और ज्ञान के लिए हमें ध्यान करना आना चाहिए !
एक बात हमेशा ध्यान रखना चाहिए की ज्ञान के जरिये ही हमारी बुद्धि प्रबल होती है ! और इसी बुद्धि का प्रयोग करके मनुष्य सैयमी बनता है ! इसीलिए मनुष्य में सही बुद्धि होना बहुत ही आवश्यक है ! सही बुद्धि सही ज्ञान से ही प्रबल बन सकती है !
अब जानते सही बुद्धि क्या है ? सही क्या है और गलत क्या है इसका निर्णय हमारी बुद्धि ही करती है ! यदि ज्ञान होगा तो सही बुद्धि होगी ! क्युकी हमारी बुद्धि ज्ञान से ही प्रवल होती है ! और हमारी सही बुद्धि का प्रयोग करके ही हम सैयमी बनते है जिससे हम सही निर्णय लेते है ! सही निर्णय लेने के लिए सही बुद्धि होना आवश्यक है और सही बुद्ध हमेसा ज्ञान से ही होती है !
मनुष्य का जीवन ईश्वर की प्राप्ति के लिए हुआ है ! मनुष्य इस्वर को सिर्फ ध्यान और ब्रम्हचर्य के सहारे ही पा सकता है ! मनुष्य मन को बस में करके ब्रम्हचर्य का पालन कर सकता है !
यदि मनुष्य शादी के बाद सिर्फ संतान प्राप्ति के लिए संभोग करता है तो उसके द्वारा किसी दिव्य आत्मा का जन्म होता जिसके द्वारा संसार का भला हो सके ! और दुनिया में ज्ञान की बढ़ोत्तरी हो सके ! मानव जाती का भला हो सके !
हमारे ऋषिमुनियों ने इस बात को पहले दिया पर आज बदलती दुनिया में वह सारी बातें किताब में बंद होकर ही रह गई है !
सही ज्ञान और सही बुद्धि से ही ब्रम्हचर्य का पालन किया जा सकता है !
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